Wednesday, October 19, 2011

गायब होती जा रही हैं ‘सोन चिरैया

GAZALA KHAN

भंवरों के अतिरिक्त एक चिड़िया भी है, जो सिर्फ फूलों का रस चूसती है। इसका नाम है ‘सोन चिरैया’। बुंदेलखंड में कहीं-कहीं इसे ‘श्याम चिरैया’ के नाम से भी जाना जाता है। अक्सर फुलवारियों में दिखने वाली यह चिड़िया अब गायब होती जा रही है। आमतौर पर भंवरे, मधुमक्खी और तितलियों को ही फूलों से निकलने वाले रस ‘मकरंद’ पर जीवित रहने वाला माना जाता है, लेकिन ‘सोन चिरैया’ या ‘श्याम चिरैया’ का भोजन भी सिर्फ फूलों का रस यानी ‘मकरंद’ है। पहले अक्सर ए चिड़िया फुलवारी (फूलों की बगिया) में दिख जाती थीं, लेकिन अब बहुत कम ‘सोन चिरैया’ नजर आती हैं। इस चिड़िया का वजन 10-20 ग्राम होता है। श्याम रंग की इस चिड़िया के गले में सुनहरी धारी होती है, जो सूर्य की किरण पड़ते ही सोने जैसा चमकती है। रंग और लकीर की वजह से ही इसे ‘सोन चिरैया’ या ‘श्याम चिरैया’ कहा जाता है। इसकी पूंछ भी चोंच की तरह नुकीली होती है और जीभ काले नाग की तरह। अपनी लम्बी जीभ को सांप की तरह बाहर-भीतर कर वह फूलों का रस चूसती है। कभी फूलों की खेती करने वाले बांदा जनपद के खटेहटा गांव के बुजुर्ग मइयाद्दीन माली कहते हैं, ‘सोन चिरैया का आशियाना फुलवारी है। बुंदेलखंड में फूलों की खेती अब बहुत कम की जाती है। यही वजह है कि इन चिड़ियों की संख्या में कमी आई है।’वहीं कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है, ‘गांवों से लेकर कस्बों तक दूरसंचार की विभिन्न कम्पनियों ने टावरों का जाल बिछा दिया है। इनसे निकलने वाली किरणों की चपेट में आकर बड़े पैमाने पर चिड़ियों की मौत हो रही है। ‘सोन चिरैया’ की संख्या में कमी की यह बहुत बड़ी वजह है।’ 
प्रस्तुति 
गजाला खान
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दुनिया के कुछ डरावने पर्यटन स्थल

GAZALA KHAN

जब शौक घूमने का हो तो क्या देश और क्या विदेश। कुछ जगहों पर घूमने पर लोगों को इतिहास की याद ताजा हो जाती है तो कुछ जगहों पर जाने के लिए लोग भावनाओं में बह जाते है। आगरा ताज प्यार की निशानी है जिसे देखने के लिए लोग दुनिया के कोने-कोने से आत है। इन सबसे इतर दुनिया में कुछ जगह ऐसी भी है जहां जाने पर डर लगता है और ये जगहें अपने आप में विचित्र भी है। लेकिन फिर भी लोग यहां पर रोमांच के लिए घूमने जाते है। जिनमें से कुछ जगहें ये हैं-
मटर म्यूजियम ऑफ मेडिकल हिस्टरी की स्थापना अमेरिका के फिलाडेल्फिया में 1858 में हुई थी।
यहां पर विचित्र प्रकार के पुराने चिकित्सकीय संसाधनों का कलक्शन है। यहां पर चिकित्सकीय विज्ञान से संबंधित कई ऐसे पुराने उपकरण रखे हुए है, जिनको देखने पर आश्चर्य होता है। इसके साथ ही यहां का सबसे डरावनी पहलू यह है कि यहां मानव खोपडियों का भी विशाल संग्रह है। जिसको देखने के लिए लोग डरावनी होने के बाद भी आते हैं।
मैक्सिको सिटी का सोनोरा मार्केट तंत्र-मंत्र और जादू-टोने के सामान मिलने के लिए प्रसिद्ध है। 
जादू-टोने में विश्वास करने वाले लोगों को यहां पर विचित्र प्रकार की चीजों जैसे मानवी खोपड़ी नुमा संरचना वाली आकृति की खरीददारी करते हुए खूब देखा जा सकता है। इन प्रकार की आकृतियों को देखकर कई बार डर भी लगता है, लेकिन फिर भी यहां के लोग मान्यता होने की वजह से इस मार्केट में आते है। यहां पर मान्यता है कि इस प्रकार की चीजों को घर में रखना घर तथा परिवारक लिए शुभ होता है। इसके साथ ही यहां पर दुर्लभ किस्म की जड़ी-बूटियों के साथ ही सांप का खून तथा सुखाया हुआ हमिंगबर्ड भी मिलता है।
पिट केरियन द्वीप के पास स्थित ईस्टर आइसलैंड अपनी विचित्रता और डरावने स्थल के लिए दुनियाभर में मशहूर है। जरा आप कल्पना कीजिए कि आप जिधर भी देखे आपको दूर-दूर तक पत्थर के बुत ही नजर आए। इन्हें देखने पर मन में डर पैदा होना तो लाजमी ही है, लेकिन फिर भी देश-विदेश से पर्यटक यहां पर घूमने के लिए आते है। ईस्टर द्वीप दुनिया की सबसे रहस्यमय जगहों में से एक है। ईस्टर आइसलैंड का स्पेनिश नाम ष्इसला डी पैसकुआष् है। यहां पर जुलाई और अगस्त के महीनों में तापमान कम होने पर सबसे अधिक पर्यटक देखे जा सकते है। 
अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित विंचेस्ट हाउस का निर्माण 1884 में हुआ था। यह महल 38 साल में बनकर तैयार हुआ था। विंचेस्ट हाउस को भूत बंगले के तौर पर जाना जाता है। 160 कमरों वाला महलनुमा यह घर पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है। जो लोग भूत-प्रेत में विश्वास करते है और जो नहीं भी करते दोनों तरह के लोग यहां पर मौज-मस्ती के लिए आते है। एक जमाने में यह सारा विंचेस्टर का घर था। लोगों का मानना है कि विंचेस्ट हाउस में सारा की आत्मा भटकती रहती है। विचेंस्ट हाउस के निर्माण में 1884 में करीब 55 लाख अमेरिकी डॉलर का खर्च आया था।
राजस्थान के देशनोक गांव का करणीमाता मंदिर 15वीं शताब्दी में बनकर तैयार हुआ था। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां पर खुले रूप से घूमने वाले चूहे है। इन चूहों को देखकर यहां आने वाले श्रद्धालुओं को अजीब तरह का डर भी लगता है। इस मंदिर में हजारों की संख्या में चूहे मुक्त रूप से घूमते रहते है, इन चूहों में कुछ सफेद चूहे भी है। सफेद चूहों को मान्यता से जोड़कर देखा जाता है। मंदिर के मुख्य द्वार पर लगा चांदी का विशालकाय गेट भी श्रद्धालुओं को खूब आकर्षित करता है। ब्रिटेन में स्थित मैरी किन वह स्थान है जहां की गलियां बीते दिनों की सच्चाइयों को उजागर करती है। यहां कभी प्लेग के शिकार लोगों को सडकों पर यूं ही लावारिस छोड़ दिया गया था और वे सही उपचार न मिलने के कारण तड़प-तड़प कर मर गए थे। अब यहां पर सैलानायों की भीड़ लगी रहती है। यूक्रेन के शेर्नोबिल में 26 अप्रैल, 1986 में हुई परमाणु सयंत्र दुर्घटना में हजारों लोग मारे गए थे। जिससे इसके आसपास का पूरा इलाका तहस-नहस हो गया था। दुर्घटना के बाद यह जगह पर्यटकों के लिए खोल दी गई थी। लोगों को यहां आकर उस भयावह त्रासदी की याद आ जाती है, लेकिन फिर भी पर्यटक यहां पर घूमने के लिए आते है। 
प्रस्तुति 
गजाला खान

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Wednesday, October 12, 2011

दुनिया का सबसे छोटा कुत्ता छह इंच लंबा


Gazala Khan
Managingeditor

दुनिया के सबसे छोटे कुत्ते की लंबाई महज छह इंच है और ऊंचाई इससे भी कम। द सन की खबर के अनुसार ग्रासिया का वजन छह आउंस है जो गिनीज बुक आफ रिकार्ड में दर्ज ब्रांडी द चिह्वाह्वा के वजन से चार आउंस कम है। ग्रासिया बौना है क्योंकि कुत्तों की ऊंचाई सामान्य तौर पर कम से कम दस इंच होती है और ग्रासिया छह इंस से भी छोटा है। झुर्रियों वाले छोटे मुंह के इस कुत्ते की पूंछ मुड़ी हुई है। कई रंगों वाले इस कुत्ते का शरीर लेकिन काफी सुडौल है। ग्रासिया को जब उसके मालिक 61 वर्षीय सान्ड़ा डेवाल नारफोक  ग्रेट यारमाउथ में घुमाने ले जाते हैं तो सबकी निगाह उस पर रहती है। सान्ड्रा कहते हैं हर कोई उसे देखकर रूक जाता है ,और उसका चक्कर लगाता है । लोगों द्वारा रुककर उस कुत्ता को देखना उन्हें अच्छा लगता है। 
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पैरों से तकदीर लिखने की जिद


Gazala khan
Managineditor

डेहरी-आनसोन किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। किसी शायर की इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है अमित कुमार ने। एक हादसे में दोनों हाथ गंवा चुके अमित पैरों से अपनी तकदीर लिख रहा है। शहर के सुभाषनगर निवासी नंदू सिंह के 22 वर्षीय पुत्र अमित अप्रैल 2004 में बिजली के तार की चपेट में आ गये। और उस हादसे में उन्हें दोनों हाथ गंवाने पड़े। पुत्र के इलाज में बेरोजगार पिता ने मकान छोड़कर सारी जमीन बेच दी। कर्ज से लद गये। पर अमित अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से न सिर्फ सदमे से उबरा बल्कि पैरों को ही हाथ के विकल्प रूप में इस्तेमाल करने लगा। अभ्यास से जल्द ही वह पैर से लिखने लगा, अब तो पैर से ही लैपटाप भी चलाता है। पैरों से ही लिखकर 2007 में मैट्रिक तथा 2009 में आइकाम परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। फिलवक्त बीकाम पार्ट थर्ड की पढ़ाई कर रहे हैं। आगे वह एमसीए करना चाहता है। पर बेरोजगार पिता के पुत्र को अपने सपने पूरा करने के लिए सहायता की जरूरत है। पढ़ाई हेतु अपने सांसद, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सबको पत्र लिख मदद मांगी। प्रधानमंत्री के पत्र का कुछ रिस्पांस मिला। प्रधानमंत्री दफ्तर के पत्राचार के आलोक में मुख्यमंत्री के उपसचिव के ज्ञापांक 1537 दिनांक 10 अगस्त के तहत जिले के प्रभारी मंत्री सुखदा पांडेय को अमित को आगे की पढ़ाई हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने को कहा गया था। बात फाइलों से आगे नहीं बढ़ सकी है। बिना हांथों की जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे अमित को अभी सहायता के लिए किसी बढ़ने वाले हाथ का इंतजार है। 
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Thursday, October 6, 2011

55 साल बाद लौटी आंख की रोशनी


इसे कुदरत का करिश्मा कहें तो गलत नहीं होगा। 55 साल बाद एक व्यक्ति की एक आंख की रोशनी वापस आ गई है। डॉक्टरों के मुताबिक इतने लंबे समय के बाद आंख की रोशनी वापस आना मेडिकल साइंस के इतिहास में पहला मामला है। हालांकि इस व्यक्ति की पहचान गुप्त रखी गई है।

 बीबीसी ने मेडिकल केस रिपोर्ट पत्रिका के हवाले से यह बात कही है। बताया गया है कि इस 63 वर्षीय मरीज को आठ साल की उम्र में दाईं आंख में एक पत्थर से चोट लगी थी। रेटिना के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण उस आंख की रोशनी चली गई थी। इस मरीज ने बताया कि पिछले दिनों मेरी दाईं आंख में दर्द हो रहा था, आंख लाल होने के साथ सूज गई थी, उसमें से पानी के साथ खून निकल रहा था। न्यूयॉर्क के एक अस्पताल के डॉक्टरों ने जब आंख की सफाई कर उसमें दवा डाली, तो सालों से रोशनी खो चुकी आंख तेज रोशनी को पहचानने लगी। इस बात को जानकर डॉक्टरों ने सर्जरी की, जिससे पूरी तरह से आंख की रोशनी वापस आ गई। इलाज करने वाले डॉक्टरों में से एक ओलुसोला ओलावोये ने कहा कि हमारी जानकारी में रेटिना के इतने लंबे समय तक क्षतिग्रस्त होने के बाद रोशनी वापस आने का यह पहला मामला है। यह सिर्फ एक मरीज के लिए बेहतर परिणाम नहीं है, बल्कि ऐसे कई दूसरे मरीजों की आंख की रोशनी वापस लाने में भी मददगार साबित होगा। उन्होंने आगे कहा कि यह मामला विशेष रूप से स्टेम कोशिकाओं को रेटिना की कोशिकाओं में बदलने के शोध में मददगार होगा। 
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